ISRO के अनुसार प्रक्षेपण से लगभग 56 मिनट पहले यान में कुछ तकनिकी खराबी आ गयी थी, सावधानी बरतते हुए इसरो के वैज्ञानिकों ने इसे दुरुस्त करने के लिए चंद्रयान-2 के प्रक्षेपण को अभी टाल दिया है। इस यान के प्रक्षेपण की नयी तारीख जल्द ही जारी की जाएगी।
14 जुलाई रविवार सुबह से ही पूरी इसरो टीम इस लांच में जुटी हुई थी, इसकी तयारी सुबह 6 बजकर 51 मिनट पर शुरू हुई थी। चंद्रयान-2 का प्रक्षेपण आज सुबह यानी 15 जुलाई तड़के 2 बजकर 51 मिनट पर होना था। इसे हर बार की तरह आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से प्रक्षेपित किया जाना था। इसमें लांच से कुछ समय पहले ही तकनीकी खामियों के कारण इसे कुछ दिन के लिए टालना पड़ा। भारत ने इस मिशन के लिए बहुत पहले से तयारी कर रखी थी। इसरो के इस मिशन में GSLV-MK3 M1 प्रक्षेपण यान का इस्तेमाल किया जा रहा है। ISRO ने बताया कि मिशन के लिए रिहर्सल कार्य शुक्रवार को पूरा हो गया था।
इसरो के इस यान का उदेश्य क्या है?
इस मिशन के मुख्य उद्देश्यों में चंद्रमा पर पानी की मात्रा का अनुमान लगाना, उसके जमीन, उसमें मौजूद खनिजों एवं रसायनों, संसाधनों तथा उनके वितरण का अध्ययन करना और चंद्रमा के बाहरी वातावरण की ताप-भौतिकी गुणों का विश्लेषण करना बताया गया है। आपको बतादें की चंद्रमा पर भारत के पहले चंद्र मिशन चंद्रयान-1 ने वहां पानी की मौजूदगी की पुष्टि की थी। इस मिशन में चंद्रयान-2 के साथ कुल 13 स्वदेशी Pay-Load यान वैज्ञानिक उपकरण भेजे जा रहे हैं। इनमें तरह-तरह के आधुनिक कैमरे, स्पेक्ट्रोमीटर, राडार, प्रोब और बहुत तरह के सिस्मोमीटर शामिल होंगे। प्रक्षेपित किये जाने वाले चंद्रयान-2 के 3 हिस्से हैं।
इसका ऑर्बिटर चंद्रमा की सतह से 100 किलोमीटर की ऊंचाई वाली कक्षा में चक्कर लगाएगा। लैंडर ऑर्बिटर से अलग हो चंद्रमा की सतह पर उतरेगा। इसे विक्रम नाम दिया गया है। यह 2 मिनट प्रति सेकंड की गति से चंद्रमा की जमीन पर उतरेगा। प्रज्ञान नाम का रोवर लैंडर से अलग होकर 50 मीटर की दूरी तक चंद्रमा की सतह पर घूमकर तस्वीरें लेगा।
इस प्रक्षेपण की खास बात ये है की इसमें अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा/NASA का एक पैसिव पेलोड भी इस मिशन का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य पृथ्वी और चंद्रमा के बीच की सटीक दूरी का पता लगाना है। यह मिशन इस मायने में खास है कि चंद्रयान चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास उतरेगा और सॉफ्ट लैंडिंग करेगा। चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर अब तक दुनिया का कोई मिशन नहीं उतरा है।
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