कंप्यूटर भाषा अनुवादक क्या होता है/What is Computer Language Translator?
कंप्यूटर एक मशीन है, ओर ये सिर्फ मशीनी भाषा ही समझता है, इसे हमारी यानी इंसानी भाषाओं की बिल्कुल भी जानकारी नहीं है। कंप्यूटर केवल वही भाषा जानता है, जो उसके लिए बनाई गई है, ओर इनको ही Machine Language कहा जाता है।
भाषा अनुवादक/language Translator
असल मे ये वो प्रोग्राम या कोड होते हैं जो विभिन प्रकार की Programing Language द्वारा लिखे गए होते हैं। और जिस Language के द्वारा इन प्रोग्राम या कोड को मशीनी भाषा मे ट्रांसलेट किया जाता है, उस लैंग्वेज को भाषा अनुवादक या Language Translator कहा जाता है। इसका कारण ये है कि कंप्यूटर केवल 2 ही अंक जानता है 0 और 1, ओर इनही के बेस पर पूरा कंप्यूटर सिस्टम काम करता है। उद्धरण के लिए अगर हम Keyboard से Result शब्द लिखते हैं तो कंप्यूटर इस 001011 कि फॉर्म में समझता है, ओर ये सारा काम भाषा अनुवादक करता है। कंप्यूटर के भाषा अनुवादक को तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया है। पहला है असेम्बलेर/Assembler, दूसरा है Compiler/Compiler, ओर तीसरा है इंटरप्रेटर/Interpreter.
असेम्बलेर/Assembler
ये एक ऐसा प्रोग्राम या कोड होता है जो Assembly Language में लिखे गए किसी भी प्रोग्राम को Read करता है और उसको मशीनी भाषा मे Translate कर देता है। असेंबली भाषा के कोड या प्रोग्राम को Source Program भी कहा जाता है। इसके द्वारा मशीनी भाषा मे अनुवाद करने के बाद जो Program प्राप्त होता है, उसे Object Program कहा जाता है।
कम्पाइलर/Compiler
ये वो Program होता है, जो किसी भी High Level Programing Language में लिखे गए किसी भी तरह के Source Program का अनुवाद Machine Language में करता है। सोर्स प्रोग्राम किसी भी भाषा के प्रत्येक Code या Direction को Translate करके उसे मशीनी भाषा के निर्देशों में बदल देता है। यहां ये ध्यान देने वाली बात भी होती है कि, किसी भी High Level Language के लिए अलग Compiler की जरूरत होती है।
इंटरप्रेटर/Interpreter
इंटरप्रेटर का काम होता है किसी भी High Level Language में लिखे गए Source Program को मशीनी भाषा मे Translate करता है। लेकिन ये एक बार मे केवल एक ही वाक्य का अनुवाद मशीनी भाषा मे करके उसको Execute करता है। इसके बाद इंटरप्रेटर सोर्स प्रोग्राम के अगले वाक्य को मशीनी भाषा मे बदलता है। अगर देखा जाए तो Compiler ओर Interpreter दोनो का काम एक जैसा ही होता है। बस फर्क ये होता है कि कम्पाइलर Object Program बनाता है और इंटरप्रेटर बनाता कुछ नहीं है बस Source Program को एक्सीक्यूट करता है। इसलिए इसका इस्तेमाल करते समय हर बार सोर्स प्रोग्राम की जरूरत पड़ती है।
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