भवन निर्माण और वास्तु शास्त्र
वास्तु शास्त्र सिद्धांत के अनुसार किसी भी तरह का मकान, फैक्ट्री, दुकान बनवाते समय सबसे महत्वपूर्ण होता है कि इनका मुख्यद्वार किस ओर, किस दिशा एवं किस स्थान पर होना चाहिए। मुख्यद्वार की दिशा का निर्धारण वस्तुतः भूखण्ड के मार्ग के अनुसार किया जाता है परंतु उस दिशा में कौन सा भाग मुख्यद्वार के लिए उपयुक्त है।भवन निर्माण की प्रक्रिया में सबसे पहले मकान का नक्शा तैयार किया जाता है अर्थात Makan किस दिशा में होना चाहिए तथा कौन सा कक्ष किस आकार का बनना चाहिए। इस पर विचार किया जाता है लेकिन भवन निर्माण की प्रक्रिया से पहले उस भवन का मुख्यद्वार किस दिशा में होना चाहिए इसके विषय में विचार किया जाता है। मकान के आगे की बाउंड्री की डिजाइन- मकान का नक्शा बनाते समय सबसे पहले उसका Mukhyadwar निर्धारित किया जाता है। प्रवेश निर्धारण की मुख्य विधि के अनुसार भूखण्ड की जिस दिशा में मुख्यद्वार का निर्माण करना हो उस दिशा की भुजा को नौ भागों में विभाजित करके पांच भाग दाहिनी ओर से, तीन भाग बाईं ओर से छोड़कर बचे भाग में द्वार बनाना चाहिए। मुख्यद्वार के लिए उचित स्थान 11-12, 28-29, 3-4-5 हैं।
भवन निर्माण के दौरान ध्यान दें कि प्रत्येक भूखण्ड के चारों ओर चार दिशाएं होती है- पूर्व, पश्चिम, उत्तर व दक्षिण। वास्तु शास्त्र में लिखा है कि भूखण्ड की पूर्वी दिशा के बीच वाले स्थान से लेकर ईशान कोण तक का स्थान उत्तम होता है। इस स्थान पर वास्तु शास्त्र के अनुसार निर्माण करने से परिवार में सुखों का आगमन होता है। पूर्व के बीच वाले स्थान से आग्नेय कोण तक का स्थान निम्नकोटि का होता है। भूखण्ड के पश्चिम दिशा के बीच वाले स्थान से लेकर वायव्य कोण तक का स्थान उत्तम गुणों से पूर्ण माना है। पश्चिम दिशा के बीच वाले स्थान से लेकर नैऋत्य कोण तक का स्थान निम्न गुणों वाला माना गया है। अतः वास्तु शास्त्र में भूखण्ड की उत्तरी दिशा के बीच भाग से लेकर ईशान कोण तक, पूर्व दिशा के बीच से लेकर ईशान कोण तक, दक्षिण दिशा के बीच भाग से आग्नेय कोण तक तथा पश्चिम दिशा के बीच भाग से लेकर वायव्य कोण तक का भाग उत्तम गुणों वाला माना गया है। उत्तर दिशा के बीच वाले भाग से वायव्य कोण तक, पूर्व के बीच भाग से आग्नेय कोण तक तथा दक्षिण दिशा एवं पश्चिम दिशा के बीच भाग से नैऋत्य कोण तक का भाग निम्न गुणों वाला माना गया है।
पूजाघर–
यदि आपके पास, स्थान हो तो मकान में पूजाघर का निर्माण ईशान कोण व उत्तर दिशा के बीच या ईशान कोण व पूर्व दिशा के बीच करवाना चाहिए। इसके अतिरिक्त भवन में किसी अन्य स्थान पर पूजा घर कभी नहीं बनाना चाहिए। यदि मकान में स्थान का अभाव भी हो तो भी इसी स्थान पर पूजाघर बनवाना चाहिए। ईशान कोण का स्वामी ईशान को माना गया है साथ ही यह कोण पूर्व एवं उत्तर दिशा के शुभ प्रभावों से युक्त होता है।
पूजाघर या पूजास्थान का निर्माण इस प्रकार होना चाहिए कि पूजा करते समय पूजा करने वाले व्यक्ति का मुख पूर्व दिशा या उत्तर दिशा की ओर रहें। हमारे धार्मिक ग्रंथों एवं वास्तुग्रंथों में कहा गया है कि धन-प्राप्ति के लिए पूजा उत्तर दिशा की ओर मुख करके और ज्ञान प्राप्ति के लिए पूर्व दिशा की ओर मुख करके करनी चाहिए।
महत्वपूर्ण वास्तु सिद्धांत-
- मकान में कमरे बनवाते समय यह अवश्य ध्यान रखें कि रसोईघर मुख्यद्वार के ठीक सामने न हो।
- वास्तु सिद्धांत के अनुसार भवन में लगाए जाने वाले खिड़कियों एवं दरवाजों की संख्या ग्राऊंड फ्लोर की अपेक्षा फस्टफ्लोर पर कम होनी चाहिए।
- सेफ या तिजोरी को इस प्रकार रखें कि उसका दरवाजा उत्तर या पूर्व दिशा की ओर खुलें। इसके लिए तिजोरी को दक्षिण या पश्चिम दीवार की ओर रखना चाहिए।
- बिजली के उपकरण कमरे के दक्षिण-पूर्व के बीच आग्नेय कोण में रखें।
- दर्पण, सिंक, वाशबेसिन और नल को हमेशा उत्तर-पू्र्व दीवार के सहारे रखें।
- जहां तक हो सके शौचालय की सीट उत्तर-दक्षिण धुरी के अनुरूप रखें। सैप्टिक टैंक उत्तर-पश्चिम या दक्षिण-पूर्व कोने में रखा जा सकता है।
- अपने भवन का मुख्यद्वार किसी अन्य मकान के मुख्यद्वार के ठीक सामने न बनवाएं।
- कूड़ेदान सड़क की बत्ती या खम्भा या बड़ा मुख्यद्वार दरवाजे के सामने न रखें।
- कभी भी टूटा हुआ दर्पण घर में नहीं रखना चाहिए।
- मकान बनवाते समय यह विशेष रुप से ध्यान रखें कि रसोईघर, शौचालय तथा पूजास्थल एक-दूसरे के पास-पास न बने।
- किसी बीम के नीचे न तो बैठना चाहिए और न ही सोना चाहिए। यदि ऐसा करना मजबूरी हो तो बीम पर फाल्स सीलिंग करवा लेनी चाहिए।
- मकान बनवाने के लिए हमेशा नईं सामग्री का ही प्रयोग करना चाहिए। यदि मरम्मत करवानी हो तो पुराना सामान भी उपयोग में लाया जा सकता है।
- सामान्य परिस्थितियों में मुख्यद्वार के बाहर कांच नहीं लगाना चाहिए लेकिन मुख्यद्वार के सामने दक्षिण दिशा में कोई रुकावट हो तो मुख्यद्वार पर दर्पण लगाना चाहिए।
- कमरे में कोई भी ऐसी तस्वीर न लगाएं जिसमें युद्ध, अपराध, अशांति, आक्रोश या कष्ट आदि दर्शाया गया हो।
- भवन के अंदर कैक्टस का पौधा नहीं रखना चाहिए। मकान की चारदीवारी के बाहर कैक्टस का पौधा रखा जा सकता है।
- मकान का उत्तरी और पूर्वी कोना मकान के द्वार के समान होता है अतः इसे हमेशा साफ-सुथरा रखना चाहिए।
- वृद्ध लोग दक्षिण-पश्चिम कोने में रहने से आराम महसूस करते हैं।
- मकान का मुख्यद्वार इस प्रकार निर्माण करवाना चाहिए कि उस पर किसी की छाया न पड़ें।
- भवन में घड़ियों की आवाज मधुर होनी चाहिए जिसे सुनकर मन में शांति महसूस हो।
- भवन में सभी प्रकार के दर्पण पूर्व एवं उत्तरी दीवार पर लगवाना चाहिए।
- भवन में घड़ियां पश्चिम, उत्तर या पूर्व दिशा में लगानी चाहिए।
- भवन का निर्माण इस प्रकार करवाना चाहिए कि वर्षा का पानी या नाली से बहने वाला पानी उत्तर-पूर्व या पूर्व-उत्तर की ओर बह सके।
- मुख्यद्वार पर धार्मिक मूर्ति लगाना शुभ होता है।
- भवन में घड़ियों की आवाज तेज एवं कड़वी नहीं होनी चाहिए। इससे भवन में रहने वाले लोगों के मन में अशांति पैदा होती है।
- इमारत की ऊंचाई नैऋत्य कोण से ईशान कोण की ओर घटनी चाहिए।
- भवन के बाहर तुलसी का पौधा लगाना अति शुभ माना गया है।
- बच्चे को चाहिए कि वह उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुख करके पढ़ें।
- भवन में घड़ियां हमेशा चलती हुई होनी चाहिए। बंद घड़ी अशुभ फलदायक होती है।
- नए भवन के निर्माण से पहले भूमिपूजन कराना चाहिए और उसमें रहने के लिए जाने से पहले गृहप्रवेश की पूजा करवानी चाहिए।
- घड़ियां सैल से चलने वाली हों तो सैल के खराब होते ही सैल को बदल देना चाहिए।
- सीढ़ियों के नीचे शौचालय और पूजा घर नहीं रखना चाहिए।
- वास्तु सिद्धांत के अनुसार दक्षिण-पश्चिम दिशा की दीवारें उत्तर-पूर्व दिशा की दीवारों की अपेक्षा अधिक मोटी होनी चाहिए।
- भवन या प्लाट के बीचों-बीच कुआं रखना अशुभ होता है।
उच्चकोटि के मुख्यद्वार-
वास्तु शास्त्र में भूखण्ड के उत्तर दिशा में ईशान कोण की ओर मुख्यद्वार बनवाना उत्तम होता है। उत्तर दिशा के ईशान कोण वाले स्थान पर मुख्यद्वार बनवाने से इस मकान में रहने वाले को अनेक प्रकार से लाभ मिलता है। भूखण्ड के उत्तर दिशा के ईशान कोण में मुख्यद्वार बनाना चाहिए तथा दक्षिण-पश्चिम दिशा में भारी सामान रखवाना चाहिए। अतः उत्तर एवं पूर्व दिशा वाला स्थान दक्षिण एवं पश्चिम वाले स्थान से हल्का होता है। वास्तु शास्त्र का आधारभूत नियम है जो कि अत्यंत शुभफलदायक होता है।
भूखण्ड के पूर्व दिशा के ईशान कोण में बनाया गया मुख्यद्वार उच्चकोटि का होता है। इस दिशा में मुख्यद्वार होने से इसमें रहने वाले लोग बुद्धिमान, ज्ञानी और विद्वान होते हैं। पूर्व दिशा के ईशान कोण में मुख्यद्वार होने से भारी सामान दक्षिण दिशा में रखा जाता है और आने-जाने का रास्ता उत्तर की ओर होता है जोकि शुभफलदायक होता है।
भूखण्ड के पश्चिमी वायव्य कोण में बनाया गया मुख्यद्वार उच्चकोटि का होता है। इस कोण में मुख्यद्वार बनाना शुभ फलदायी एवं कल्याणकारी होता है।
निम्नकोटि के मुख्यद्वार-
भूखण्ड के पूर्व आग्नेय कोण में बनाया गया मुख्यद्वार निम्नकोटि का होता है। पूर्वी आग्नेय कोण में द्वार बनाने के परिणाम अच्छे नहीं होते हैं अतः पूर्वी आग्नेय कोण में द्वार कभी न बनवाएं।
भूखण्ड के उत्तरी वायव्य कोण में बनाया गया मुख्यद्वार निम्नकोटि का होता है। इस कोण में मुख्यद्वार बनाने से मकान में निवास करने वालों की मनोस्थिति हमेशा अस्थिर एवं चंचल बनी रहती है। अतः उत्तरी वायव्य कोण में द्वार कभी न बनवाएं।
मुख्यद्वार संबंधी वास्तु सिद्धांत-
- भूखण्ड की चारदीवारी का मुख्यद्वार पश्चिम में हो तो मकान का मुख्यद्वार मकान के पश्चिमी ओर बने कक्ष में इस प्रकार बनवाया जाए कि मुख्यद्वार कक्ष के उत्तरी अर्द्धभाग की ओर पड़े इससे मुख्यद्वार प्रभावी स्थिति में होगा और धन-धान्य समृद्धि की वृद्धि होती रहेगी।
- भूखण्ड चारदीवारी का मुख्यद्वार यदि दक्षिण में हों तो भवन का Mukhyadwar भवन के दक्षिणी ओर के कमरा में इस प्रकार बनवाया जाए कि मुख्यद्वार कमरे के पूर्वी अर्द्धभाग में पड़े। यह स्थिति मकान के निवासियों के लिए शुभफलदायक रहेगी।
- Makan में द्वार बनवाते समय ध्यान रखें कि द्वार की चौखटें मकान की मुख्य दीवार से लगती हुई न हों। दीवार और द्वार की चौखट के बीच कम से कम चार इंच का अंतर अवश्य ही रहना चाहिए।
- द्वार में लगाए गए दरवाजें दो पल्लों वाले एवं अंदर की ओर खुलने वाले होने चाहिए।
- भवन के अंदर द्वार, खिड़कियां तथा अलमारियां एक-दूसरे के सामने बनवाएं।
- जिस मकान में बहुत से द्वार और आलिंद हों उस द्वार का कोई नियम नहीं होता चाहे जिस ओर दरवाजे बनवाएं।
- भूखण्ड की चारदीवारी का मुख्यद्वार यदि उत्तर में हो तो भवन का मुख्यद्वार मकान के पश्चिमी ओर बने कमरे में इस प्रकार बनवाया जाए कि मुख्यद्वार कमरे के उत्तरी अर्द्धभाग की ओर पड़े, इससे मुख्यद्वार और भी प्रभावी स्थिति में होगा और धन-धान्य समृद्धि की वृद्धि होती रहेगी।
- यदि Makan का मुख्यद्वार पश्चिम में हो तो पूर्व दिशा में एक द्वार बनवाना अनिवार्य है। इसी प्रकार मकान का मुख्यद्वार यदि दक्षिण में स्थित हो तो उस मकान में उत्तर में एक द्वार बनवाना अनिवार्य है। यह सिद्धांत आवासीय भवन निर्माण के लिए अति आवश्यक है। इससे मकान में निवास करने वालों की गति पूर्वोंमुखी एवं उत्तरोमुखी रहेगी।
- भूखण्ड की चारदीवारी का मुख्यद्वार पूर्व में हो तो भवन का मुख्यद्वार मकान की पूर्वी दिशा के कमरे में बनवाना चाहिए। एक बात का ध्यान रखें कि भवन का मुख्यद्वार उस कमरे के उत्तरी अर्द्धभाग में पड़ता हो। इस प्रकार बनाए गए द्वार से मुख्यद्वार बहुत ही ज्यादा प्रभावशाली स्थिति में आ जाता है और परिवार के सदस्यों को शुभ व कल्याणकारी फल देता है।
- वास्तु शास्त्र में बाहरी एवं भीतरी द्वारों की दिशाओं में चार प्रकार का संबंध माना गया है। जब बाहरी द्वार व भीतरी द्वार एक ही दिशा में आमने-सामने हों तो यह संबंध उत्संग संबंध माना गया है जो कि सर्वोत्तम होता है। जब बाहरी द्वार भीतरी द्वार के बाईं ओर होता हो तो यह संबंध अपसव्य संबंध माना जाता है जो कि अच्छा नहीं होता। जब बाहरी द्वार भीतरी द्वार के दाहिनी ओर होता है तो यह संबंध सत्य संबंध माना गया है जो कि शुभ होता है। जब बाहरी द्वार भीतरी द्वार की विपरीत दिशा में होता हो तो यह संबंध पृष्ट भंग संबंध माना गया है जो कि अशुभ होता है।
- घर का मुख्य दरवाजाअपने आप खुल जाए या बंद हो जाए तो भयदायक होता है। चौखट एक ओर छोटी दूसरी ओर बड़ा हो जाए तो भी अशुभ होता है।
- एक दरवाजे के ऊपर यदि दूसरा दरवाजा बनवाना हो तो वह नीचे वाले दरवाजे से आकार में छोटा होना चाहिए तथा ये एक सीध में होने चाहिए।
- द्वार के कपाट को खोलने व बंद करने में कोई आवाज नहीं आनी चाहिए।
- मुख्यद्वार का आकार भवन के अन्य द्वारों की अपेक्षा बड़ा होना चाहिए, यह बात भवन निर्माण के दौरान जरुर सोचें।
भवन में दरवाजों की संख्या-
कुछ लोग भ्रमित रहते हैं कि मकान में दरवाजों की संख्या सम होनी चाहिए या विषम। द्वार यदि मकान में उपरोक्त बताए स्थान पर वास्तु शास्त्र के अनुसार बनाए गए हों तो उनकी संख्या कम हो या विषय कई फर्क नहीं पड़ता। अतः द्वारों की संख्या को महत्व देना आवश्यक नहीं परंतु यदि भूखण्ड की उत्तर दिशा में खाली स्थान न छोड़कर भवन में गिनती के आठ द्वारों का निर्माण कराया गया हो तो ऐसी स्थिति में सम संख्याएं शुभ फल नहीं देतीं।
इसी प्रकार यदि किसी भवन में कुएं, चूल्हें एवं सीढ़ियों का निर्माण Shastra सम्मत न करवाया गया हो और दरवाजों की संख्या भी सम संख्या में रखी हो तो इसका फल शुभ नहीं होता। यदि मकान में कुएं, चूल्हे एवं सीढ़ियां वास्तु शास्त्र के अनुसार बनवाए गए हों तो दरवाजों की संख्या चाहे सम हो या विषय कोई फर्क नहीं पड़ेगा। इसी प्रकार Makan में खिड़कियों तथा अलमारियों की संख्या चाहे सम संख्या में हो या विषम इसमें कोई दोष नहीं होता। एक बात हमेशा ध्यान में रखेंं कि भवन निर्माण के दौरान बनाई गई खिड़कियों तथा अलमारियों की संख्या चाहे सम हो या विषम इसका कोई दोष नहीं होता।
वास्तु शास्त्र के विभिन्न ग्रंथों में मकान में द्वारों की संख्या संबंधी दिए गए मुख्य निर्देश निम्नानुसार हैं-
- यदि भवन में चारों दिशाओं में द्वार बनाने हों तो Vastu Shastra के अनुसार ये निम्न स्थानों पर बनवाएं- उत्तर के बीच से ईशान कोण की ओर, पूर्व के बीच भाग से ईशान कोण की ओर, दक्षिण के बीच से आग्नेय कोण की ओर तथा पश्चिम से आग्नेय कोण की ओर।
- मकान में एक ही प्रवेश द्वार बनाना हो तो पूर्व या उत्तर दिशा में बनवाना चाहिए। लेकिन माकन दक्षिण दिशा या पश्चिम दिशा की ओर हो तो उसमें कभी एक द्वार नहीं बनवाना चाहिए।
- अगर Makan में तीन दिशाओं में द्वार बनाना हो तो उत्तर दिशा व पूर्व दिशा में द्वार बनाना आवश्यक है। तीसरा द्वार सुविधानुसार पश्चिम या दक्षिण दिशा में बनाया जा सकता है।
- अगर मकान में दो प्रवेशद्वार बनाने हों, शुभफल प्राप्त करने के लिए द्वारों को पूर्व दिशा एवं दक्षिण दिशा में ही दो द्वार कभी नहीं बनवाने चाहिए अर्थात मकान में एक प्रवेश द्वार पूर्व दिशा या उत्तर दिशा में होना अनिवार्य है।
- द्वारवेध- मकान के मुख्यद्वार के सामने यदि कोई विघ्न आता हो तो उसे द्वार वेध की संज्ञा दी जाती है जैसे किसी द्वार के सामने खम्भा, सीढ़ी, द्वार, कोण, बाड़ पेड़, मशीन या कोल्हू आदि। मकान के मुख्यद्वार के सामने द्वारवेध नहीं होना चाहिए परंतु यदि द्वारवेध मकान की ऊंचाई के दोगुना से अधिक दूरी पर स्थित हो तो द्वारवेध का अशुभ प्रभाव नहीं पड़ता है।
वास्तु शास्त्रों में वर्णित द्वारवेध के मुख्य नियम निम्न प्रकार से हैं-
- मुख्यद्वार के सामने बड़े पेड़ का होना भी द्वारवेध माना गया है यह बच्चों के लिए दोषकारक होता है।
- मुख्यद्वार के सामने कुआं होना द्वारवेध माना गया है इससे मिर्गी रोग हो सकता है।
- अगर रास्ता मुख्यद्वार पर आकर समाप्त होता हो तो यह भी द्वारवेध कहलाता है एवं यह मकान मालिक के लिए उचित फलदायक नहीं होता।
- मुख्यद्वार के पास किसी देवता का मंदिर होना भी द्वारवेध माना गया है। इससे मकान मालिक को अधिक कष्ट एवं परेशानियों का सामना करना पड़ता है। भवन एवं वेध वस्तु के बीच राजमार्ग होने से तो वेधदोष प्रभावी नहीं होता।
- केवल मकान के बीच मुख्यद्वार के सामने द्वारवेध होने से दोष होता है। मकान की ऊंचाई के दोगुना दूरी पर स्थित वेध वस्तु का प्रभाव भी मकान पर निवास करने वालों पर नहीं पड़ता है।
- मुख्यद्वार के सामने हमेशा कीचड़ का रहना भी द्वारवेध माना गया है। इस तरह मुख्यद्वार के सामने कीचड़ होने से परिवार में शोक-दुख आदि दोष पैदा करने वाला होता है।
खिड़कियों से संबंधित वास्तु सिद्धांत-
- भवन में वायु का संचरण खिड़कियों के माध्यम से होता है। खिड़कियों से संबंधित वास्तु शास्त्र के विभिन्न ग्रंथों में वर्णित मुख्य नियम निम्नानुसार हैं-
- उत्तर दिशा में अधिक खिड़कियां परिवार में धन-धान्य की वृद्धि करती है। लक्ष्मी व कुबेर की दयादृष्टि बनी रहती है।
- खिड़कियों का निर्माण संधि स्थाल में नहीं होना चाहिए।
- खिड़कियां द्वार के सामने होनी चाहिए जिससे चुम्बकीय चक्र पूर्ण हो सकें। इससे गृह में सुख शांति बनी रहती है।
- वायु प्रदूषण से बचने के लिए मकान में जिन दिशाओं से शुद्ध वायु प्रवेश करती है उसके विपरीत दिशाओं में एग्जास्ट फैन लगाना चाहिए। खिड़कियों की संख्या सम होनी चाहिए।
- खिड़कियों के पल्ले अंदर की ओर खुलने चाहिएं।
- पश्चिम, पूर्व तथा उत्तरी दीवारों पर खिड़कियों का निर्माण शुभ होता है।
- मकान में खिड़कियों का मुख्य लक्ष्य, भवन में शुद्ध वायु के निरंतर प्रवाह के लिए होता है।
- खिड़कियां सम संख्या में लगानी चाहिए। लेकिन यदि मकान का निर्माण वास्तु शास्त्र के अनुसार किया गया हो तो खिड़कियों की संख्या सम हो या विषम कोई फर्क नहीं पड़ता।
- खिड़कियां हमेशा दीवार में ऊपर-नीचे न बनाकर एक ही सीध में बनानी चाहिए।
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मकान में बॉलकनी एवं बरामदा-
- मकानों में बॉलकनी एवं बरामदे का स्थान महत्वपूर्ण होता है। बॉलकनी, बरामदा, terrace आदि भवन में खुले स्थान के अंतर्गत आते हैं।
- इनमें Y के स्थान पर इसे बनाना शुभ माना जाता है तथा N के स्थान पर बनाना अशुभ होता है।
- भूखण्ड में उत्तर, पूर्व एवं उत्तर-पूर्व के बीच वाले स्थान अर्थात ईशान कोण में अधिक खुला स्थान रखना चाहिए। दक्षिण और पश्चिम में खुला स्थान कम रखना चाहिए। इसी प्रकार मकान में बॉलकनी एवं बरामदे के रूप में उत्तर-पूर्व में खुला स्थान सर्वाधिक होना चाहिए ताकि उसमें रहने वाले सुख-समृद्धि पा सकें।
- टैरेंस व बरामदा खुले स्थान के अंतर्गत आता है इसलिए सुख-समृद्धि के लिए उत्तर-पूर्व में ही निर्मित करना चाहिए क्योंकि सुबह के समय सूर्य की किरणें एवं प्राकृतिक हवा खिड़कियों के साथ-साथ बरामदे एवं balcony से भी आती है।
- पश्चिम दिशा में जहां तक हो सकें बॉलकनी एवं बरामदा नहीं बनवाना चाहिए क्योंकि अस्त होते हुए सूर्य की किरणें स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद नहीं होती है।
- बॉलकनी एवं बरामदे का स्थान भूखण्ड की दिशा पर निर्भर है परंतु प्रयास यह होना चाहिए कि प्रातः कालीन सूर्य किरणों का प्रवेश एवं प्राकृतिक हवा का प्रवाह भवन में प्राप्त होता रहें। यदि दोमंजिला मकान हो तो पूर्व एवं उत्तर दिशा की ओर मकान की ऊंचाई कम रखनी चाहिए एवं ऊपरी मंजिल में बॉलकनी या बरामदा उत्तर-पूर्व दिशा में ही बनाना चाहिए। जब भवन निर्माण करवा रहे हो तो उपर बताई गई सभी बातों का ध्यान रखें।
रसोईघर संबंधी वास्तुनियम एवं वास्तुदोष निवारण-
- वास्तु शास्त्र के नियमानुसार रसोईघर कभी भी ईशान कोण में नहीं बनवाना चाहिए। ऐसा करने से परिवार के लोगों को आर्थिक कमी का सामना करना पड़ता है। कुछ स्थिति में यह अधिक दुष्प्रभाव डालता है जिससे वंशवृद्धि रुक जाती है।
- यदि मकान में चूल्हा ईशान कोण में ही रखा हो तो इसका परिवर्तन करके आग्नेय कोण में स्थापित कर दें। स्थान-परिवर्तन संभव नहीं हो एवं चूल्हा स्लैब पर रखा हो तो स्लैब के नीचे तांबे का बड़ा जल से भरा जलपात्र हमेशा रखें एवं प्रतिदिन सुबह-शाम इसका जल बदलते रहें। भोजन पकाने के तुरंत बाद इस स्थान को साफ कर दें। आग्नेय कोण में एक बल्ब जलाकर रखें जिस पर लाल रंग की पन्नी चढ़ी हो। यदि चूल्हा फर्श पर रखा हो तो जलपात्र चूल्हे के निकट रखा जाना चाहिए। शेष नियम वही रहेंगे।
- रसोईघर को आठ दिशाओं एवं विदिशाओं में विभाजित करके ऐसी व्यवस्था अवश्य करनी चाहिए कि चूल्हा रसोईघर के आग्नेय कोण में रहे।
- ईशान कोण व उत्तर दिशा के अतिरिक्त किसी अन्य कोण या दिशा में चूल्हा रखने से कोई हानि नहीं होती परंतु आग्नेय कोण में जल संबंधी कार्य होता हो तो अवश्य होती है। कहने का तात्पर्य यह है कि आग्नेय कोण में अग्नि संबंधी कार्य न होने से अग्निभय संभव है। यदि आग्नेय कोण में अग्नि संबंधी कार्य जैसे विद्युत उपकणों का संचालन आदि हो रहा है तो चूल्हा ईशान व उत्तर दिशा के अतिरिक्त कहीं भी रख सकते हैं।
- उत्तर दिशा में चूल्हा रखा जाना वर्जित है। ऐसा करने से अर्थहानि होती है। इसके लिए भी उपरोक्त उपाय करने चाहिए।
- रसोईघर में भारी सामान बर्तन आदि दक्षिणी दीवार की ओर रखें।
- भवन में रसोईघर का निर्माण इस प्रकार करवाएं कि मुख्यद्वार से रसोईघर में रखे समान जैसे- गैस, चूल्हा, बर्नर आदि दिखाई न दें। इससे परिवार के संकटग्रस्त होने की संभावना होती है। अनेक स्त्रियां अपने रसोईघर का निर्माण इस प्रकार करवाती है कि खाना बनाते समय घर में कौन आ रहा है इसकी जानकारी खिड़की से देखकर हो जाए। ऐसी स्थिति में बाहर से आने वाले व्यक्ति को उस खिड़की में से चूल्हा दिखाई दे सकता है।
- रसोईघर में टांड आदि दक्षिण एवं पश्चिम दीवार पर ही बनाए जाने चाहिए परंतु आवश्यकतानुसार चारों दीवारों पर भी बनाए जा सकते हैं।
- यदि रसोई में फ्रिज भी रखा जाना हो तो उसे आग्नेय, दक्षिण, पश्चिम या उत्तर दिशा में रखा जाना उचित होगा। इसे नैऋत्य कोण में कभी न रखें अन्यथा यह अधिकतर खराब ही रहेगा।
- यदि भोजन करने की व्यवस्था भी रसोई घर में की जानी हो तो यह रसोईघर में पश्चिम की ओर होनी चाहिए।
- रसोईघऱ में गैस बर्नर, चूल्हा स्टोव या हीटर आदि दीवार से लगभग तीन इंच हटकर रखे होने चाहिए।
- खाना बनाते समय गृहिणी या खाना बनाने वाले का मुख पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए यह मकान के निवासियों के लिए स्वास्थ्यवर्धक होता है।
- वास्तु सिद्धांत के अनुसार रसोईघर में खाली एवं अतिरिक्त गैस सलैण्डर आदि नैऋत्य कोण में रखे जाने चाहिए।
- अन्न आदि के डिब्बे उत्तर-पश्चिम अर्थात वायव्य कोण में रखे जाने चाहिए। वायव्य कोण में अन्न आदि रखने से घर में अन्न की परिपूर्णता बनी रहती है।
- रसोईघर में माइक्रो ओवन, मिक्सर, ग्राइंडर आदि दक्षिण दीवार के निकट रखे जाने चाहिए।
- रसोईघर में पीने का पानी ईशान कोण में या उत्तर दिशा में रखा जाना चाहिए।
भोजन के कमरे से संबंधी वास्तु शास्त्र का सिद्धांत-
- आजकल मकान मंद भोजन का कमरा बनावाया जाता है। भोजन का कमरा बनाने के लिए वास्तु शास्त्र के अनुसार पश्चिम दिशा उपयुक्त है। भोजन का कमरे की व्यवस्था रसोईघर से पश्चिम दिशा की ओर की जा सकती है।
- भोजन का कमरा रसोईघर के पश्चिम दिशा की ओर भी बनाया जा सकता है।
- भोजन का कमरा भवन की पश्चिम दिशा में बनाया जाना चाहिए। पश्चिम दिशा में भोजन का कमरा होने से भोजन करने से सुख, शांति एवं संतुष्टि मिलती है।
- रसोईघर के अंदर ही भोजन करने की व्यवस्था होने पर यह व्यवस्था रसोईघर में पश्चिम दिशा की ओर होनी चाहिए।
- यदि भोजन का कमरा पश्चिम दिशा के अतिरिक्त किसी अन्य दिशा में बना हुआ हो तो उस कमरा में पश्चिम की ओर वैठकर भोजन किया जाना चाहिए।
भण्डार का कमरा बनाने के लिए वास्तु शास्त्र का सिद्धांत-
भण्डार घर बनाने के दो उद्देश्य होते हैं- एक वर्ष भर के लिए अन्नादि का भण्डारण एवं अनुपयुक्त तथा अतिरिक्त सामान का भण्डारण।
यदि व्यक्ति के पास पर्याप्त जगह हो तो दोनों उद्देश्यों के लिए अलग-अलग भण्डार घर बनाना चाहिए और अगर जगह की कमी हो तो दोनों उद्देश्यों की पूर्ति एक ही भंडार घर में की जा सकती है। पहले दोनों उद्देश्यों के लिए अलग-अलग कमरे के विषय में चर्चा करेंगे।
- वायव्य कोण में बनाए गए अन्नादि-भण्डार घर में अन्न आदि की कभी कमी नहीं होगी।
- अन्न आदि के भण्डार भवन में सामान रखने के लिए स्लैब आदि दक्षिण या पश्चिम दीवार पर बनाने चाहिए परंतु आवश्यकता पड़ने पर इन्हें चारों दीवारों पर बनाया जा सकता है। परंतु पूर्वी एवं उत्तरी दीवार पर बनायी स्लैब की चौड़ाई दक्षिण एवं पश्चिम दीवार पर बनायी गई स्लैब से कम होनी चाहिए और इन पर अपेक्षाकृत हल्का सामान रखा जाना चाहिए।
- यदि मकान में अन्न आदि के भण्डार वाले भवन में खाली स्थान हो तो डाईनिंग टेबल लगाया जा सकता है परंतु डाईनिंग टेबल कमरे की पश्चिम दिशा में या रसोईघर से पश्चिम दिशा की ओर होनी चाहिए।
- अन्न आदि के भण्डार घर में रखे किसी डिब्बे, कनस्तर आदि को खाली न रहने दें। अन्न आदि के प्रयोग से इनके खाली होने की दशा में उसमें कुछ अन्न आदि अवश्य शेष रखे रहने चाहिए।
- प्रतिदिन प्रयोग में आने वाले अन्न आदि को कमरे के उत्तर-पश्चिम दिशा में रखा जाना चाहिए।
- अन्न आदि के भण्डार घर का निर्माण मकान में उत्तर दिशा या वायव्य कोण में करना चाहिए।
- अन्न आदि के भण्डार घर में तेल, घी, मक्खन, मिट्टी का तेल एवं गैस सलैण्डर आदि इसके आग्नेय कोण में रखा जाना चाहिए।
- अन्न आदि के भण्डार घर का द्वार नैऋत्य कोण के अतिरिक्त किसी दिशा या विदिशा में बनाया जा सकता है।
- अन्न आदि का वार्षिक संग्रह दक्षिण या पश्चिम दीवार के पास होना चाहिए।
- वास्तु सिद्धांत के अनुसार अन्न आदि के भण्डार घर के ईशान कोण में शुद्ध एवं पवित्र जल से भरा हुआ मिट्टी या तांबे का एक पात्र रखा जाना चाहिए। ध्यान रखें यह पात्र कभी खाली न हो। अन्न आदि के भण्डार घर में पूर्वी दीवार पर लक्ष्मी नारायण का चित्र लगाना चाहिए।
भण्डार घर के लिए वास्तु शास्त्र की सिद्धांत-
अनुपयोगी सामान के लिए मकान से बाहर चारदीवारी के निकट कबाड़घर बनाना चाहिए परंतु यदि कबाड़घर बना पाना संभव नहीं है और भण्डार घर में ही यह सामान रखा जाता हो तो इसके लिए कमरा का नैऋत्य कोण प्रयोग करना चाहिए।
- इस भण्डार घर में अन्न आदि का संग्रह न करें।
- भारी सामान दक्षिणी दीवार एवं पश्चिमी दीवार पर दक्षिण दिशा की ओर रखे जाने चाहिए।
- इस कमरे का दरवाजा उत्तर या पूर्व दिशा में होना चाहिए साथ ही एक खिड़की भी इन्हीं दिशाओं में होनी चाहिए।
- भण्डार घर भवन के अंदर दक्षिण या पश्चिम भाग में बनाया जाना चाहिए।
- शेष दोनों दिशाओं अर्थात पूर्व एवं उत्तर में हल्के सामान रखे जाने चाहिए।
- यदि स्थान के अभाव में अन्न आदि का संग्रह भण्डार घर में करना पड़े तो रोजाना प्रयोग होने वाला अन्न रसोईघर में वायव्य कोण में रखे एवं अतिरिक्त अन्न आदि इस भण्डारघर में पश्चिम दीवार के निकट उत्तर दिशा की ओर रखा जा सकता है।
संयुक्त भण्डार घर के लिए वास्तु सिद्धांत-
- संयुक्त भण्डार घर में कबाड़ अर्थात ऐसी वस्तुओं को नहीं भरा जाना चाहिए जिनका अब कोई प्रयोग नहीं रह गया हो।
- संयुक्त भण्डार घर में अन्य सामानों का भण्डारण दक्षिण एवं पश्चिम दीवार की ओर किया जाना चाहिए।
- संयुक्त भण्डार घर मकान के पश्चिम या उत्तर-पश्चिम भाग में बनाया जाना चाहिए।
- संयुक्त भण्डार घर में अन्न आदि का भण्डारण वायव्य कोण की ओर किया जाना चाहिए।
- संयुक्त भण्डार घर में पूर्व, उत्तर तथा पश्चिम दिशा या इनके कोणों में कोई एक खिड़की अवश्य होनी चाहिए।
- संयुक्त भण्डार घर का द्वार नैऋत्य कोण के अतिरिक्त किसी स्थान पर बनाया जा सकता है।
- संयुक्त भण्डार घऱ के ईशान कोण में जल का पात्र रखना चाहिए।
कबाड़घर
घर में अनेक वस्तुएं इस प्रकार की होती हैं जो कि समय व्यतीत के साथ हमारे लिए उपयोगी नहीं रह जाती। इन वस्तुओं को सामान्य बोलचाल में कबाड़ कहा जाता है। इस कबाड़ में से समय-समय पर बेकार वस्तुओं को बाहर कर देना चाहिए परंतु कभी-कभी काम में आने वाली वस्तुओं का संग्रह कबाड़घर में किया जा सकता है। कबाड़घर का निर्माण मुख्य मकान से बाहर नैऋत्य कोण में किया जाना चाहिए। यदि स्थान की कमी के कारण नैऋत्य कोण में भूमितल पर कबाड़ का भण्डारण किया जाना चाहिए।
कबाड़घर के लिए वास्तु सिद्धांत एवं वास्तुदोष निवारण-
- कबाड़घर का द्वार मकान के अन्य सभी द्वारों से आकार में छोटा रखना चाहिए।
- कबाड़घर किसी व्यक्ति को रहने, सोने या किराए पर नहीं दिया जाना चाहिए। भवन का मालिक ऐसे व्यक्ति से हमेशा परेशान रहेगा।
- उत्तर, पूर्व, ईशान, वायव्य कोण में कबाड़ आदि का भण्डारण करने से अर्थहानि व मानसिक अशांति में वृद्धि होती है। आग्नेय कोण में कबाड़ का भण्डारण करने से अग्नि से हानि होने की संभावना होती है।
- इस कबाड़घर के द्वार के पास कोई बातचीत आदि नहीं करनी चाहिए न हीं जोर से ठहाका लगाएं और न ही गुस्से में या ऊंची आवाज में बातचीत करें। ऐसा करना घर की खुशियों के लिए हानिकारक है।
- वास्तु सिद्धांत के अनुसार कबाड़घर का द्वार आग्नेय, ईशान या उत्तर दिशा के अतिरिक्त अन्य किसी दिशा में होना चाहिए।
- यदि त्रुटिवश या अज्ञानतावश कबाड़ आदि का भण्डारण नैऋत्य कोण के अतिरिक्त किसी अन्य दिशा में किया हुआ हो तो इसे तुरंत बदल दें।
- कबाड़घर में पानी नहीं भरा हुआ होना चाहिए।
- कबाड़घर का द्वार एक पल्ले का होना चाहिए।
- कबाड़घर के दरवाजे का रंग काला होना चाहिए।
- कबाड़घर के फर्श व दीवारों में सीलन नहीं होनी चाहिए।
- कबाड़घर के दरवाजे का रंग काला होना चाहिए।
- कबाड़घर का द्वार टिन या लोहे का बनवाना चाहिए।
- कबाड़घर में किसी देवी-देवता का चित्र न रखें।
- कबाड़घर की लम्बाई और चौड़ाई न्यूनतम होनी चाहिए।
बेडरुम /सोने का कमरा
अच्छे स्वास्थ्य के लिए सोना बहुत जरूरी होता है। इससे शारीरिक स्फूर्ति, ताजगी एवं सुकून मिलता है। यदि मनुष्य रात को ठीक प्रकार से नहीं सोता तो उठने के बाद कार्य करने में अपनी पूरी क्षमता का प्रयोग नहीं कर पाता। हमने पहले भी चर्चा की है कि मनुष्य का शरीर एक चुम्बक है और सिर उत्तरी ध्रुव एवं पैर दक्षिणी ध्रुव हैं। अतः सोने के समय सिर को दक्षिण दिशा की ओर करके सोना चाहिए ताकि चुम्बकीय तरंगों का प्रवाह ठीक प्रकार से हो सके। यदि चुम्बकीय प्रवाह शरीर में उचित प्रकार से होगा तो निद्रा भी अच्छी आएगी।
सोने के कमरे की लम्बाई एवं चौड़ाई इस प्रकार होनी चाहिए कि इनके गुणनफल में नौ से गुणा करके आठ से भाग देने पर तीन या पांच शेष बचें। तीन शेष बचने से दक्षिण दिशा में बनाए गए बेडरूम के आकार का फल शत्रु पर विजय, आर्थिक एवं शारीरिक सुख प्राप्ति के रूप में पड़ता है। पांच शेष बचने से पश्चिम दिशा में बनाए गए सोने का कमरे के आकार का फल आर्थिक सम्पन्नता लाता है।
सोने का कमरा संबंधी वास्तु सिद्धांत एवं वास्तुदोष निवारण-
- बच्चों, अविवाहितों या मेहमानों के लिए पूर्व दिशा में सोने का कमरा बनवाएं परंतु इस कमरे में नवविवाहित जोड़े को नहीं ठहराना चाहिए अर्थात इस कमरे में संभोग नहीं करना चाहिए। यदि इस कमरे में ऐसा होता हो तो परिवार को आर्थिक एवं सामाजिक संकटों का सामना करना पड़ता है।
- मकान के मालिक का सोने का कमरा दक्षिण-पश्चिम कोण में या पश्चिम दिशा में होना चाहिए। दक्षिण-पश्चिम अर्थात नैऋत्य कोण पृथ्वी तत्व अर्थात स्थिरता का प्रतीक है। अतः इस स्थान पर सोने का कमरा होने से मकान में लम्बे समय तक निवास होता है।
- सोने के कमरे में यदि पूजास्थल हो तो वह सोने के कमरे में ईशान कोण की तरफ बनाना चाहिए। ऐसी स्थिति में पलंग पर सोते समय सिर पूर्व की तरफ किया जा सकता है ताकि पांव पूजास्थल की ओर न रहें।
- सोने के कमरे में बेड या पलंग इस प्रकार से हों कि उस पर सोने से सिर पश्चिम या दक्षिण दिशा की ओर रहे। इस तरह सोने से सुबह उठने पर मुख पूर्व या उत्तर दिशा की ओर होगा। पूर्व दिशा सूर्योदय की दिशा है। यह जीवनदाता एवं शुभ है। उत्तर दिशा धनपति कुबेर की मानी गई है अतः सुबह उठते उस तरफ मुंह होना भी शुभ है।
- यदि मकान के स्वामी का कार्य ऐसा हो जिसमें कि उसे अधिक अर्थात भवन से बाहर ही रहना पड़ता हो तो सोने का कमरा वायव्य कोण में बनाना उत्तम होगा।
- उत्तर दिशा की ओर सिर करके नहीं सोना चाहिए। उत्तर दिशा में सिर करके सोने से नींद नहीं आती है और आती हो तो बुरे स्वप्न अधिक आते हैं।
- यदि सोते समय सिर पश्चिम दिशा की ओर रखना हो तो पलंग का एक सिरा पश्चिम की दीवार को छूता रहे।
- दक्षिण-पश्चिम या दक्षिण में स्थित सोने के कमरे वयस्क, विवाहित, बच्चों के लिए भी उपयुक्त है।
- सोने के कमरा का दरवाजा एक पल्ले का होना चाहिए।
- यदि सोते समय सिर दक्षिण दिशा की ओर रखना हो तो पलंग का एक हिस्सा दक्षिण की दीवार को छूता रहे।
- अगर भवन में एक से अधिक मंजिलें हों तो मकान के मालिक का सोने का कमरा ऊपर की मंजिल पर बनवाना चाहिए।
- पलंग के सामने दीवार पर प्रेरक व रमणिक चित्र लगवाने चाहिए। आदर्शवादी चित्र आत्मबल को बढ़ाते हैं और दाम्पत्य जीवन भी आनन्दमय व विश्वास्त बना रहता है।
- सोने के कमरे में प्रकाश की व्यवस्था करते समय पलंग पर मुख के सामने प्रकाश की व्यवस्था नहीं करनी चाहिए। वास्तु शास्त्र में मुख पर प्रकाश पड़ना अशुभ होता है। सोने के कमरे में प्रकाश हमेशा सिर के पीछे या बाईं ओर पड़ना चाहिए।
- सोते समय पैर मुख्यद्वार की ओर नहीं होने चाहिए। मौत होने पर शमशान ले जाने से पहले शरीर को मुख्यद्वार की ओर पैर करके रखा जाता है।
- सोने के कमरे में पलंग के दाईं ओर छोटी टेबल आवश्यक वस्तु या दूध, पानी रखने के लिए स्थापित कर सकते हैं।
- पलंग सोने के कमरे के द्वार के पास स्थापित नहीं करना चाहिए, ऐसा करने से चित्त एवं मन में अशांति बनी रहेंगी।
- सोने के कमरे में अलमारियों का मुंह नैऋत्य कोण या दक्षिण दिशा की ओर नहीं खुलना चाहिए। यह नियम मात्र उन अलमारियों के लिए है जिनमें चैकबुक, बैंक या व्यापार संबंधी कागजात, रुपये पैसे तथा अन्य कीमती सामान रखा जाता है अर्थात तिजोरी आदि। ऐसी अलमारियों में रखा धन धीरे-धीरे कम होता जाता है। इन अलमारियों का मुंह दक्षिण दिशा को छोड़कर अन्य दिशाओं में रखा जाना चाहिए।
- ईशान कोण में आग्नेय दिशा वाले कमरे में छोटे बच्चों के लिए सोने का कमरा का प्रबंध करना चाहिए।
- सोने के कमरे में पलंग के ठीक ऊपर छत में कोई शहतीर नहीं होना चाहिए। यदि पलंग के ठीक ऊपर शहतीर हो तो इस शहतीर पर फाल्स सीलिंग करा लेनी चाहिए।
- जहां तक संभव हो तिजोरी सोने के कमरे में न रखें यदि रखनी ही पड़े तो यह सोने के कमरे की दक्षिण दिशा में इस प्रकार रखे कि इसे खोलने पर उत्तर दिशा में दृष्टि पड़े।
- वास्तु सिद्धांत के अनुसार ड्रेसिंग टेबिल उत्तर दिशा में पूर्व की ओर रखी जानी चाहिए। ड्रेसिंग टेबिल को पश्चिम दिशा में भी रखा जा सकता है।
- पूर्वी व उत्तरी दिशा वाले कमरे को सोने का कमरा बनाने के लिए स्वास्थ्य की दृष्टि से हानिकारक होता है।
- विद्यार्थियों के लिए पश्चिम दिशा में सिरहाना करना उपयुक्त होता है।
- कपड़े रखने के लिए अलमारी वायव्य कोण या दक्षिण दिशा में होनी चाहिए।
- बाईं ओर करवट करके लेटने की आदत डालना बहुत अच्छी मानी जाती है।
- पूर्व की ओर सिरहाना वृद्धाजनों के लिए उपयुक्त होता है। यह आध्यात्मिक चिंतन, ध्यान, साधना व अच्छी नींद के लिए उपयुक्त है।
- पलंग को सोने के कमरे की दीवारों से थोड़ा हटाकर रखना चाहिए।
- उत्तर दिशा में सिरहाना कभी नहीं करना चाहिए।
- घड़ी पूर्व या पश्चिम की दीवार पर लगाएं। इसके अलावा उत्तर दिशा की दीवार पर भी अच्छी मानी जाती है।
- सोने के कमरे में अध्ययन करने के लिए टेबिल, लाईब्रेरी, पुस्तकों की अलमारी आदि बेडरूम के पश्चिम या नैऋत्य में होनी चाहिए। मेज-कुर्सी इस प्रकार रखी हों कि मुंह पूर्व की ओर या उत्तर की ओर रहें। इस तरह से अध्ययन करने वाला व्यक्ति प्रतिभा सम्पन्न और ज्ञानवान बनता है।
- सोने के कमरे में टांड आदि पश्चिम या दक्षिणी दीवार पर बनाना चाहिए परंतु उसके नीचे सोने का पलंग नहीं रखना चाहिए। यदि पलंग रखना ही पड़े तो टांड के नीचे भी फाल्स सीलिंग लगवा दें।
- टेलीविजन, हीटर एवं अन्य विद्युत उपकरण कमरे के आग्नेय कोण में होने चाहिए।
स्नानघर एवं शौचालय
साधारणतः स्नानघर एवं शौचालय तीन प्रकार से बनाए जाते हैं- भवन के सोने के कमरे के साथ संयुक्त स्नानघर एवं शौचालय, घर के अंदर सबके लिए संयुक्त स्नानघर एवं शौचालय तथा अलग-अलग स्नानघर एवं शौचालय।
वास्त शास्त्र के अनुसार भवन के अंदर स्नानघर उत्तर या पूर्व दिशा में बनवाया जा सकता है जबकि शौचालय पश्चिम, वायव्य कोण से हटकर उत्तर दिशा की ओर या दक्षिण दिशा में बनवाया जा सकता है। संयुक्त स्नानघर एवं शौचालय के लिए पश्चिम वायव्य कोण एवं पूर्वी आग्नेय कोण अच्छे माने जाते हैं।
वास्तु सिद्धांत के अनुसार बेडरूम से सटे स्नानघर बेडरूम के ऊपर या पूर्व दिशा में जहां दो समांतर बेडरूम हों, वहीं बीच में बनवाएं जाते हैं। इस स्थिति में बीच वाला स्नानघर दक्षिण दिशा के बेडरूम के उत्तर में तथा उत्तरी बेडरूम के दक्षिण में पड़ेगा। वास्तु के अनुसार इस स्थिति को बहुत अच्छा माना जाता है। इसी प्रकार दक्षिण में बने दो समांनतर बेडरूम के बीच में एक स्नानघर बनवाया जा सकता है। इसमें पश्चिम दिशा के बेडरूम के पूर् में तथा पूर्वी बेडरूम के पश्चिम दिशा में स्नानघर पड़ेगा। आजकल शौचालय स्नानघर के साथ ही बनाए जाते हैं। शौचालय की सीट (डब्ल्यू. सी.) इस प्रकार रखें कि बैठने वाले का मुख दक्षिण, पश्चिम की ओर मुख रखना भी ठीक नहीं मानते क्योंकि पूर्व-पश्चिम सूर्योदय और सूर्यास्त से संबंधित हैं अतः यह सूर्य का अपमान करना माना गया है, रामायण में भी इसका वर्णन मिलता है। ईशान कोण में शौचालय नहीं बनवाना चाहिए क्योंकि यह हानिप्रद हैं। नैऋत्य कोण में शौचालय बनवाएं तो गड्ढा न खुदवाएं, चबूतरा बनवाकर संडास लगवाएं तथा सैप्टिक टैंक मध्य उत्तर या मध्यपूर्व में ही रखें।
स्नानघर संबंधी वास्तु सिद्धांत-
- यदि मकान का मुख्यद्वार उत्तर दिशा की ओर हो तो भी स्नानघर पूर्व या पूर्वी आग्नेय कोण में बनाना चाहिए।
- स्नानघर दक्षिण या पश्चिम नैऋत्य कोण में भी बनवाया जा सकता है।
- यदि भवन का मुख्यद्वार पूर्व दिशा की ओर हो तो स्नानघर पूर्व-आग्नेय कोण में बनवाना चाहिए।
- यदि मकान का मुख्यद्वार पश्चिम दिशा की ओर हो तो वे स्नानघर पश्चिम नैऋत्य कोण में बनाना चाहिए।
- स्नानघर के लिए सर्वाधिक उपयुक्त दिशा पूर्व होती है।
- स्नानघर में गीजर, हीटर एवं अन्य विद्युत उपकरण दक्षिण-पूर्व आग्नेय कोण में लगाए जाने चाहिए।
- वैसे तो शौचालय स्नानघर में बनाना नहीं चाहिए परंतु यदि बनाना आवश्यक ही हो तो यह स्नानघर में पश्चिम या वायव्य कोण की ओर बनाया जाना चाहिए।
- स्नानघर की दीवारों का रंग हल्का होना चाहिए जैसे सफेद, हल्का नीला, आसमानी आदि।
- स्नानघर से सटा हुआ, रसोई के पास एक कपड़े एवं बर्तन होने का स्थान होना सुविधाजनक है।
- स्नानघर का द्वार रसोईघर के द्वार के ठीक सामने नहीं होना चाहिए।
- यदि स्नानघर बड़ा हो और उसी में वाशिंग मशीन भी रखी हो तो मशीन को दक्षिण या आग्नेय कोण में रखा जा सकता है।
- स्नानघर का द्वार पूर्व या उत्तर में होना चाहिए।
- स्नानघर में बाथटब पूर्व, उत्तर या ईशान कोण से रखा जाना चाहिए।
- स्नानघर के फर्श का ढाल पूर्व या उत्तर दिशा में होना चाहिए।
- स्नानघर में शॉवर ईशान कोण, उत्तर या पूर्व दिशा में होना चाहिए।
शौचालय संबंधी वास्तु सिद्धांत-
- शौचालय का दरवाजा पूर्व दिशा या आग्नेय कोण की तरफ खुलने वाला होना चाहिए।
- शौचालय में संगमरमर की टाइल्स का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए।
- यदि आपके निर्मित मकान में त्रुटि या अज्ञानवश ईशान कोण में शौचालय का निर्माण हो गया हो तो इसके बाहर एक बड़ा दर्पण इस प्रकार लगाना चाहिए कि नैऋत्य कोण से देखने पर आईना बिल्कुल सामने दिखाई दे या यहां पर शिकार करते हुए शेर या मुंह फाड़े हुए एक शेर का बड़ा चित्र भी लगाया जा सकता है।
- जिन भूखण्डों के पूर्व या उत्तर दिशा में रास्ते हो उन पर निर्मित मकानों में ईशान कोण में शौचालय नहीं बनवाने चाहिए। मानसिक व पारिवारिक अशांति, असाध्य रोग अनैतिक कामों से पतन होता है।
- भवन में शौचालय पश्चिम, वायव्य कोण से हटकर उत्तर की ओर या दक्षिण में होना चाहिए।
- शौचालय का निर्माण इस प्रकार होना चाहिए कि शौचालय में बैठते समय मुंह उत्तर एवं पूर्व दिशा की ओर कभी न हो। शौचालय में सीट इस प्रकार लगी होनी चाहिए कि बैठते समय आपका मुंह दक्षिण दिशा या पश्चिम दिशा की ओर रहे।
- शौचालय का फर्श मकान के फर्श से एक या दो फीट ऊंचा होना चाहिए।
- शौचालय में एक खिड़की उत्तर, पश्चिम या पूर्व दिशा में होनी चाहिए।
- शौचालय में पानी की टोटी पूर्व या उत्तर दिशा में होनी चाहिए।
- आदर्श संयुक्त स्नानघर एवं शौचालय के लिए वास्तु सिद्धांत-
- संयुक्त स्नानघर एवं शौचालय का दरवाजा मध्य पूर्व में रखा जा सकता है।
- संयुक्त स्नानघर एंव शौचालय में वाश बेसिन पश्चिम की दीवार में भी लगाया जा सकता है।
- यदि संयुक्त स्नानघर एवं शौचालय का दरवाजा वायव्य कोण में हो तो भी शावर ईशान कोण में ही रखना चाहिए।
- संयुक्त स्नानघर एवं शौचालय पश्चिम वायव्य कोण या पूर्व आग्नेय कोण में बनाना चाहिए।
- संयुक्त स्नानघर एवं शौचालय में शौचालय पश्चिम या वायव्य कोण की ओर बनाया जाना चाहिए।
- संयुक्त स्नानघर एवं शौचालय को रसोईघर के सामने नहीं बनवाना चाहिए।
- संयुक्त स्नानघर एवं शौचालय में शावर एवं नल ईशान कोण में लगाया जा सकता है।
शौचकूप या सैप्टिक टैंक
शौचालय से मल आदि की निकासी के लिए सामान्यतः सीवर का प्रयोग किया जाता है परंतु जिस स्थान पर सीवर लाईन नहीं होती वहां पर शौचकूप बनवाया जाता है। इस शौचकूप में यह मल इकट्ठा होता रहता है और एक समयांतराल पर इसे साफ करा दिया जाता है। चूंकि शौचकूप बनवाने के लिए गड्ढा खोदना होता है अतः इसका निर्माण नैऋत्य कोण में कभी नहीं करवाना चाहिए क्योंकि वास्तु शास्त्र के सिद्धांतों के अनुसार नैऋत्य कोण में किसी भी प्रकार का गड्ढा या खुदाई नहीं होनी चाहिए। इससे वहां के निवासियों को भयंकर परिणाम प्राप्त होते हैं।
शौचकूप या सौप्टिक टैंक संबंधी वास्तु सिद्धांत-
- सैप्टिक टैंक की लम्बाई पूर्व-पश्चिम दिशा में एवं चौड़ाई उत्तर दक्षिण दिशा में होनी चाहिए।
- सैप्टिक टैंक वायव्य कोण और पश्चिम दिशा के मध्य, पश्चिम दिशा में वायव्य कोण की अपेक्षा अधिक हटा हुआ भी बनाया जा सकता है।
- नैऋत्य कोण में बनाया गया सैप्टिक टैंक Makan के स्वामी के जीवन के लिए कुप्रभावी होता है।
- सैप्टिक टैंक का तीन चौथाई भाग जिसमें कि जल होता है पूर्व दिशा में होना चाहिए एवं मल आदि के लिए स्थान उत्तर दिशा में होना चाहिए।
- शौचकूप या सैप्टिक टैंक मकान के वायव्य कोण एवं उत्तर दिशा के मध्य में होना चाहिए।
- आग्नेय कोण में बनाया गया सैप्टिक टैंक स्वास्थ्य के लिए हानिप्रद होता है।
- सैप्टिक टैंक दक्षिण या पश्चिम की ओर नहीं बनाना चाहिए।
- पूर्व दिशा में बनाया गया सैप्टिक टैंक मान-सम्मान की कमी करता है।
- सैप्टिक टैंक हमेशा दीवार से एक या दो फीट हटाकर बनाना चाहिए।
- दक्षिण दिशा में बनाया गया सैप्टिक टैंक मकान के मालिक के जीवन साथी के जीवन के लिए हानिप्रद है।
- उत्तर दिशा में बनाया गया सैप्टिक टैंक धन की हानि कराता है।
- सैप्टिक टैंक भूमि तल से नीचा होना चाहिए।
- ईशान कोण में बनाया गया सैप्टिक टैंक आजीविका के लिए हानिकारक है।
- पश्चिम दिशा में बनाया गया सैप्टिक टैंक मानसिक अशांति उत्पन्न करता है।
नलकूप या जलस्रोत- नलकूप या Makan में प्रयोग किए जाने वाले जल का स्रोत ईशान कोण में होना चाहिए अर्थात मकान में जल ईशान कोण से ही आना चाहिए। यदि हम मयूनिसपल कॉरपोरेशन (नगर निगम) की वाटर लाइन का प्रयोग कर रहे हैं तो भी वाटर कनैक्शन भूखण्ड के ईशान कोण से ही आना चाहिए परंतु यह भवन के ईशान कोण एवं भूखण्ड ईशान कोण को मिलाने वाली रेखा पर नहीं होना चाहिए।
नलकूप एवं जलस्रोत संबंधी वास्तु सिद्धांत-
- दक्षिण में कूप या गड्ढ़ा स्त्रियों की अकाल मौत का कारण होता है। इस कूप को तुरंत भरवा देना चाहिए एवं कूप का निर्माण ईशान कोण में किया जाना चाहिए या इससे गहरा कूप ईशान कोण में बनवा लेना चाहिए और दक्षिण दिशा में स्थित कूप के जल का प्रयोग बंद कर देना चाहिए। यदि ऐसा संभव नहीं हो तो इस कूप पर ढक्कन लगवाकर इसके जल को एक पाइप लाइन द्वारा ईशान कोण से भूखण्ड के बाहर ले जाकर फिर से ईशान कोण से पाइप लाइन द्वारा भूखण्ड एवं मकान में लाकर प्रयोग करना चाहिए। इस कूप के ढक्कन पर भारी सामान रखा जाना चाहिए। इस पर जनरेटर को भी स्थापित किया जा सकता है।
- कूप या हैंडपम्प के लिए पूर्व या उत्तरी ईशान कोण सर्वोत्तम स्थान है। उत्तरी ईशान या पूर्व ईशान में कुआं या गड्ढ़ा हो तो सुख, सम्पन्नता, वंश वृ्द्धि व प्रसिद्धि प्राप्ति होती है।
- दक्षिण नैऋत्य कोण में कूप या गड्ढ़ा हो तो स्त्री रोगग्रस्त रहती है, चरित्रहीन एवं कर्जदार होती है। इस कूप को तुरंत भरवा देना चाहिए एवं कूप का निर्माण ईशान कोण में किया जाना चाहिए।
- मकान की चारदीवारी के ईशान कोण में पम्पसेट हो तो उस पर बनने वाली छत की आकृति झोंपड़ी जैसे होनी चाहिए एवं यह निर्माण पूर्व व उत्तर की दीवारों से सटा हुआ नहीं होना चाहिए।
- पूर्वी आग्नेय कोण में कूप या गड्ढ़ा रोगों, अग्निभय एवं चोरी का संकेतक है। इस कूप पर ढक्कन लगवाकर इसके जल को एक पाइप लाइन के द्वारा ईशान कोण से भूखण्ड के बाहर ले जाकर फिर से ईशान कोण से पाइप लाइन द्वारा भूखण्ड एवं मकान में लाकर प्रयोग करना चाहिए।
- कूप के तल में चौकोर या वृत्ताकार वलय बिठाने पर भी कुएं की जगत (मुंडेर) का निर्माण गोलाकृति में ही होना चाहिए।
- पश्चिम में कूप या गड्ढ़ा पुरुषों के लिए अस्वास्थ्यकारी होता है। इस कूप पर ढक्कन लगवाकर इससे जल को एक पाइप लाइन के द्वारा ईशान कोण से भूखण्ड के बाहर ले जाकर फिर ईशान कोण से पाइप लाइन द्वारा भूखण्ड एवं मकान में लाकर प्रयोग करना चाहिए।
- दक्षिण आग्नेय कोण में कूप या गड्ढ़ा हो तो उस भवन की स्त्रियां अस्वस्थ रहेगी। बुरे व्यसन एवं भय का शिकार होंगी। ऐसी दशा में उपरोक्तानुसार ही उपाय किया जाना चाहिए।
- वास्तु सिद्धांत के अनुसार पश्चिम वायव्य़ या उत्तरी वायव्य कोण में कूप या गड्ढ़ा होने से मुकदमेबाजी, चोरी, पागलपन आदि अनेक प्रकार के झंझट उत्पन्न होते हैं। इस कूप को जल्दी भरवा देना चाहिए एवं कूप का निर्माण ईशान कोण में किया जाना चाहिए।
- कुएं की जगत (मुंडेर) भवन के नैऋत्य कोण की अपेक्षा नीची होनी चाहिए।
- पश्चिम नैऋत्य कोण में कुआं या गड्ढ़ा हो तो पुरुषों को रोग होता हैं एवं वे चरित्रहीन बन जाते हैं। इस कुएं को तुरंत भरवा देना चाहिए तथा कुएं का निर्माण ईशान कोण में किया जाना चाहिए।
- मध्य भाग में कुंआ या गड्ढ़ा होने से Makan के स्वामी का विनाश होता है। इस कूप को तुरंत भरवा देना चाहिए एवं कुएं का निर्माण ईशान कोण में किया जाना चाहिए।
- कूप की जगत उत्तर व पूर्व की दीवारों से सटी हुई नहीं होनी चाहिए।
- स्वीमिंग पुल- स्वीमिंग पुल के लिए वही वास्तु सिद्घांत एवं वास्तुदोष निवारण के उपाय उपयोगी है जो कि नलकूप या जलस्रोत के लिए बताए गए हैं।
- पानी की टंकी- पानी की टंकी का प्रयोग जल संग्रह के लिए किया जाता है। पानी की टंकी दो प्रकार की होती है- भूमिगत पानी की टंकी एवं ओवरहेड पानी की टंकी। दोनों प्रकार की टंकियों के लिए वास्तु सिद्धांत भिन्न-भिन्न होते हैं।
- भूमिगत पानी की टंकी- भूमिगत पानी की टंकी के लिए सामान्यतः वे ही वास्तु सिद्धांत उपयोग होते हैं जोकि नलकूप या जलस्रोत के लिए बताए गए हैं।
- ओवरहेड पानी की टंकी- छत पर रखी जाने वाली अर्थात ओवरहेड पानी की टंकी से भवन की ऊंचाई प्रभावित होती है। अतः इसके लिए वास्तु सिद्धांत भूमिगत पानी की टंकी से भिन्न हैं।
ओवरहेड पानी की टंकी संबंधी वास्तु सिद्धांत-
- यदि किसी कारणवश विवश होकर ईशान कोण में पानी की टंकी लगानी हो तो वायव्य कोण में इससे अधिक ऊंचा कोई निर्माण करा लेना चाहिए। वायव्य कोण से अधिक ऊंचा आग्नेय कोण में तथा आग्नेय कोण से अधिक ऊंचा नैऋत्य कोण में निर्माण अवश्य कराना चाहिए। ऐसा करने पर ईशान में टैंक के निर्माण का वास्तुदोष दूर हो जाएगा।
- वास्तु सिद्धांत के अनुसार भवन की छत पर रखी जाने वाली ओवरहेड पानी की टंकी दक्षिण-पश्चिम या नैऋत्य कोण में बनानी चाहिए। नैऋत्य कोण को राक्षसों का स्थान माना गया है इसलिए भारी वजन वाली चीजें उसी दिशा में स्थापित करनी चाहिए।
- भवन की छत पर पानी की टंकी ईशान में वर्जित है क्योंकि ईशान किसी भी प्रकार की ऊंचाई या भार को सहन नहीं कर सकता है। ऐसा करने से अनेक कठिनाइयां उत्पन्न होती है।
- यदि नलकूप एवं पानी की टंकी वास्तु अनुसार उचित स्थान पर न हों तो पूर्व ईशान कोण या उत्तरी ईशान कोण में एक छोटी भूमिगत टंकी बनवाकर पूरे भवन में वहां से पानी का प्रयोग करने से इस वास्तुदोष का निवारण हो जाता है।
ड्रेनेज
Makanसे पानी की निकासी को ड्रेनेज कहा जाता है। भवन में परनाला (ड्रेनेज पाइप) उचित स्थान में बनाना बहुत महत्वपूर्ण कार्य होता है क्योंकि प्रयोग किए गए पानी का ठहराव घर में सीलन उत्पन्न करता है और रोग का कारण बनता है। इसलिए घर बनाते समय ड्रेनेज लाइन बहुत ही व्यवस्थित तरीके से सही दिशा में बनानी चाहिए। यदि नगर निगम की पहले से ड्रेनेज लाइन है तो उसे सही ढाल से जोड़ना उचित होता है अन्यथा ड्रेनेज लाइन बनाने पर विचार किया जाना चाहिए परंतु पाइप लाइन उचित मार्ग की दिशा पर ही आधारित होगीः-
- उत्तरोन्मुख Makan में ड्रेनेज उत्तर में उत्तर-पूर्व की ओर बनाएं।
- पश्चिम दिशा की ओर वाले भवन में पश्चिम की ओर उत्तर-पश्चिम दिशा में ड्रेनेज बनवाएं।
- पूर्व दिशा की ओर वाले भवन में ड्रेनेज पाइप उत्तर पूर्व में पूर्व दिशा में सही माना जाता है।
- दक्षिण दिशा की ओर मुख वाले दक्षिण पूर्व में दक्षिण की ओर ड्रेनेज बनाएं।
- स्वागत कमरा- भवन में स्वागतकक्ष की व्यवस्था एक अत्यंत महत्वपूर्ण व्यवस्था है। भवन चाहे छोटा हो या बड़ा आने वाले व्यक्तियों के लिए स्वागतकक्ष होना आवश्यक है। स्वागतकक्ष को बैठक भी कहते हैं।
स्वागतकक्ष संबंधी वास्तु सिद्धांत-
- स्वागतकक्ष में बैठने की व्यवस्था इस प्रकार होनी चाहिए कि परिवार के मुखिया का मुख पूर्व या उत्तर दिशा की ओर हो एवं मेहमान का मुख पश्चिम या दक्षिण दिशा की ओर हो।
- स्वागतकक्ष ईशान कोण की दीवार में पूजाघर बनाया जा सकता है या कोई धार्मिक चित्र या झरने आदि का चित्र अवश्य लगाना चाहिए।
- कमरे में रखा जाने वाला फर्नीचर वर्गाकार या आयताकार होना चाहिए और किसी आकार का नहीं। कमरे में फर्नीचर आदि पश्चिम या दक्षिण दिशा में रखे जाने चाहिए। जगह की कमी के कारण यदि फर्नीचर पूर्व या उत्तर दिशा में रखा जाना हो तो वह हल्का और पीले रंग का होना चाहिए। साथ ही फर्श पर लकड़ी के गुटके रखकर उस पर फर्नीचर रखना चाहिए अर्थात फर्नीचर का फर्श से सीधा सम्पर्क न हो।
- स्वागत कमरे में झाडू-फानूस आदि कमरे के केन्द्र से पश्चिम दिशा की ओर हटाकर लगाने चाहिए।
- स्वागतकक्ष में यदि जानवरों आदि की खाल को सजाना हो तो उन्हे वायव्य कोण में सजाया जाना चाहिए।
- स्वागतकक्ष में उत्तरी एवं पूर्वी दीवार की ओर फर्नीचर नहीं रखना चाहिए क्योंकि इन दिशाओं में भारी सामान नहीं रखा जाना चाहिए।
- स्वागतकक्ष में यदि दीवान रखा जाना हो तो वह पश्चिम या दक्षिण दीवार को छूता हुआ रखा जाना चाहिए एवं दीवान पर लेटते समय सिर दक्षिण या पश्चिम दिशा में होना चाहिए।
- स्वागतकक्ष का दरवाजा अगर स्वागतकक्ष के ईशान कोण में हो तो वह सब प्रकार से शुभफलदायक माना जाता है।
- स्वागतकक्ष में ईशान कोण खाली हमेशा रहना चाहिए।
- कमरे में पशु-पक्षियों के चित्र, स्त्रियों के चित्र, रोते हुए बच्चे का चित्र एवं युद्ध के चित्र नहीं लगाने चाहिए।
- दक्षिण दिशा में समय बताने वाला उपकरण कभी नहीं लगाना चाहिए।
- स्वागतकक्ष में टी.वी. एवं वी.सी.आर. आदि मनोरंजन के उपकरण पश्चिम दिशा, वायव्य या आग्नेय कोण में रखे जाने चाहिए।
- वास्तु सिद्धांत के अनुसार स्वागतकक्ष के प्रवेशद्वार के ऊपर अंदर की ओर से किसी देवी देवता का चित्र नहीं लगाना चाहिए परंतु स्वागतकक्ष के प्रवेशद्वार के ऊपर बाहर की ओर गणेश जी की टाइल या चित्र लगाया जा सकता है।
- स्वागतकक्ष में एयर कंडीशनर एवं रूम हीटर आदि विद्युत उपकरण कमरे के आग्नेय कोण में लगाने चाहिए।
- टेलीफोन को भी वायव्य एवं पश्चिम दिशा में रखा जाना अच्छा माना जाता है। कुछ विद्वानों का मानना है कि टेलीफोन को आग्नेय कोण में रखा अधिक उचित होता है क्योंकि इसमें विद्युत का प्रवाह रहता है परंतु टेलीफोन में विद्युत की अपेक्षा ध्वनि का अधिक महत्व एवं प्रयोग है। इसके लिए वायव्य कोण या पश्चिम दिशा अधिक शुभ मानी जाती है।
- स्वागतकक्ष में अलमारी, किताबों की शेल्फ, भारी मूर्तियां आदि पश्चिम या दक्षिण दिशा में रखे जाने चाहिए।
- स्वागतकक्ष में म्यूजिक सिस्टम एवं स्पीकर आदि ध्वनि संबंधित उपकरणों को वायव्य कोण या पश्चिम दिशा में रखा जा सकता है।
- स्वागतकक्ष में घड़ी पूर्व, उत्तर या पश्चिमी दीवार पर लगाई जानी चाहिए।
- स्वागतकक्ष में यदि अध्ययन करने की मेज लगाई जानी हो तो यह कमरा के पूर्व ईशान, उत्तर या उत्तरी वायव्य को में लगाई जानी चाहिए। इस मेज पर रखा जाने वाला टेबिललैम्प मेज के आग्नेय कोण की ओर होना चाहिए।
- यदि स्वागतकक्ष का एक भाग भोजन के कमरे के लिए प्रयोग किया जाना हो तो उसे स्वागतकक्ष में पश्चिम दिशा की ओर बनाना चाहिए।
- स्वागतकक्ष में कूलर को पूर्व दिशा या पश्चिम दिशा में रखा जाना चाहिए। कूलर आग्नेय कोण में कभी नहीं रखना चाहिए। ऐसा करने पर कूलर अक्सर खराब ही रहता है।
अतिथि का कमरा (गेस्टरूम) संबंधी वास्तु सिद्धांत-
- मकान में आने वाले मेहमानों को ठहराने के लिए भी वास्तु शास्त्र में निम्नलिखित सिद्धांत बनाए गए हैं-
- मकान में गेस्टरूम पश्चिम दिशा में नैऋत्य कोण की ओर, दक्षिण दिशा की ओर नैऋत्य कोण या दक्षिण दिशा या आग्नेय कोण की ओर नहीं बनवाना चाहिए। इससे मेहमान भवन में अधिक समय तक ठहरता है और भवन के बीच रहने वाले लोगों के बीच कलह बना रहता है। इसके अतिरिक्त इस दिशा में गेस्टरूम में होने पर इसमें ठहरने वाले मेहमान के आने का उद्देश्य भी पूरा नहीं होता।
- गेस्टरूम हमेशा पश्चिमी वायव्य कोण की ओर, वायव्य कोण, उत्तरी वायव्य कोण की ओर या उत्तरी दिशा के ईशान कोण की ओर बनवाना चाहिए। इससे मेहमान भवन में कम समय ठहरता है और भवन में सुख शांति बनी रहती है। इसके साथ ही मेहमान के आने का उद्देश्य भी पूरा होता है।
- गेस्टरूम में गेस्ट के सोने की व्यवस्था अन्य सोने के कमरे के समान ही करना चाहिए।
- नौकरों के कमरे के लिए वास्तु सिद्धांत-
- मकान में काम करने वाले नौकरों के लिए कमरा बनवाने के लिए वास्तु सिद्धांत-
- भवन में नौकरों के रहने के लिए कमरा बनवाते समय कमरे के अंदर अन्य सभी वास्तु नियमों का विशेष ध्यान रखना चाहिए विशेष कर दक्षिण एवं पश्चिमी भाग पूर्व एवं उत्तरी भाग से अधिक भारी होना चाहिए। कमरे का ईशान कोण स्वच्छ एवं शुद्ध होना चाहिए।
- यदि स्थान का अभाव न हो तो नौकरों का कमरा भवन के निकट दक्षिण या पश्चिम दिशा में चारदीवारी से सटाकर बनाना चाहिए। यदि मुख्य भवन के बाहर बनाना संभव न हो तो भवन के अंदर इसी भाग में उनका कमरा बनवाना चाहिए परंतु नौकरों के कमरे की दीवार कबाड़घर से लगी हुई नहीं होनी चाहिए।
- नौकरो का कमरा यदि किसी कारणवश पूर्व या उत्तर दिशा में बनाना पड़ जाए तो उसे कमरे की इन दीवारों से सटाकर नहीं बनाना चाहिए।
पोर्टिको
वास्तु सिद्धांत के अनुसार पोर्टिको का निर्माण भूखण्ड की दिशा पर निर्भर करता है। यदि भूखण्ड उत्तर दिशा की ओर हो तो पोर्टिको उत्तर दिशा के ईशान कोण में बनाया जाना चाहिए। यदि भूखण्ड वायव्य कोण की दिशा में हो तो पोर्टिको पश्चिमी वायव्य कोण में बनाया जाना चाहिए। यदि भूखण्ड पश्चिम दिशा की ओर हो तो भी पोर्टिको पश्चिम दिशा में वायव्य कोण की ओर बनवाना चाहिए। यदि पूर्व दिशा के मुख वाले भूखण्ड में रास्ता उत्तर या पूर्व दिशा की ओर हो तो पोर्टिको उत्तर या पूर्व दिशा की ओर बनवाना चाहिए।
यदि पूर्व दिशा के मुख भूखण्ड में रास्ते उत्तर-पूर्व दिशा की ओर हो तो पोर्टिको उत्तर या पूर्व दिशा की ओर बनवाना चाहिए। इसे पूर्व में भी बना सकते हैं। यदि भूखण्ड ईशान कोण की दिशा में हो और रास्ता उत्तर या पूर्व दिशा की ओर हो तो पोर्टिको को उत्तर या पूरव दिशा की ओर बना सकते हैं एवं उत्तर में उत्तर या पूर्व में भी बना सकते हैं। पोर्टिको सुविधानुसार इस प्रकार बनवाना चाहिए कि उत्तर एवं पूर्व दिशा दक्षिण एवं पश्चिम से नीची रहे।
गैराज
भवन में गैराज बनाना रास्ते की स्थिति पर निर्भर करता है। यदि भूखण्ड पूर्व दिशा की ओर हो तो गैराज दक्षिण या पूर्व दिशा की ओर बनवाना चाहिए। यदि भूखण्ड उत्तर दिशा की ओर हो तो गैराज को दक्षिण या पश्चिम दिशा की ओर बनवाएं। यदि भूखण्ड पश्चिम दिशा की ओर हो तो गैराज को दक्षिण या पश्चिम दिशा की ओर बनवाएं। यदि भूखण्ड दक्षिण दिशा की ओर हो तो गैराज को दक्षिण-पश्चिम में पश्चिम दिशा की ओर बनाएं। मकान में गैराज बनाने का स्थान नौकरों के कमरे के पास बनवाना उचित रहता है।
सीढ़ियां-
- वास्तु शास्त्र में भवन में सीढ़ियां बनाने के भी सिद्धांत बनाए गए हैं। सीढ़ियों के नीचे कोई महत्वपूर्ण कार्य नहीं करना चाहिए। यहां तक कि शौचालय भी नहीं बनवाना चाहिए। सीढ़ियों के नीचे यदि शौचालय बनवाना ही हो तो इसकी छत सीढ़ियों के आधार से भिन्न होनी चाहिए अर्थात शौचालय की छत एवं सीढ़ियों के बीच खाली स्थान होना चाहिए।
- सीढ़ियों की ढाल पूर्व दिशा या उत्तर दिशा की ओर होनी चाहिए अर्थात पश्चिम दीवार से मिलकर पूर्व से पश्चिम की ओर चढ़ते हुए बनाएं या दक्षिण दीवार से लगकर उत्तर से दक्षिण की ओर चढ़ते हुए बनाएं।
- सीढ़ियां हमेशा विषम संख्या में बनानी चाहिए अर्थात सीढ़ियों की संख्या 3, 5, 9, 11, 17 आदि होनी चाहिए।
- यदि किसी पुराने भवन में सीढ़ियां उत्तर या पूर्व दिशा में बनी हों तो उसके वास्तुदोष को समाप्त करने के लिए छत पर दक्षिण या पश्चिम दिशा में एक कमरा बनवाना चाहिए।
- वास्तु सिद्धांत के अनुसार ईशान कोण में सीढ़ियां कभी नहीं बनवानी चाहिए।
- यदि सीढ़ियां घुमावदार बनवाएं तो उनका घुमाव हमेशा पूर्व से दक्षिण य दक्षिण से पश्चिम या पश्चिम से उत्तर या पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए अर्थात सीढ़ियां चढ़ते समय हमेशा बाएं से दाईं ओर मुड़नी चाहिए।
- सीढ़ियां बनवाते समय यह ध्यान रखें कि वह पूर्वी दीवार से मिली हुई न हों। सीढ़ियां हमेशा दीवार से कम से कम तीन इंच दूर ही बनवाएं परंतु दक्षिण या पश्चिम दीवार से मिली हुई बनानी चाहिए।
- सीढ़ियों के नीचे एवं ऊपर दरवाजा बनवाना चाहिए तथा यह ध्यान रखें कि ऊपर का दरवाजा, नीचे के दरवाजे से बारह भाग कम हो।
- सीढ़ियां मकान के पीछे दक्षिण या पश्चिम भाग के दाईं ओर हो तो अच्छा होता है।
- सीढ़ियों का मुख पूर्व या दक्षिण दिशा में होना चाहिए। वास्तु शास्त्र के अनुसार इस दिशा में सीढ़ियों का मुख होने से शुभ फल मिलता है।
तलघर (बेसमेंट)
भवन में बेसमेंट कभी सम्पूर्ण भूखण्ड में नहीं करवाना चाहिए। वास्तु शास्त्र में मकान का उत्तरी एवं पूर्वी स्थान दक्षिणी एवं पश्चिमी स्थान की अपेक्षा नीचा होना चाहिए अतः बेसमेंट मकान के उत्तर एवं पूर्व में बनाना चाहिए। दक्षिण एवं पश्चिम दिशा मं बनाए गए बेसमेंट अत्यंत कष्टदायक होते हैं। यदि किसी निर्मित भवन में दक्षिण या पश्चिम दिशा में बेसमेंट पहले से ही बना हुआ हो तो उसका उपयोग भारी सामान रखने या गैराज के लिए करना चाहिए। बेसमेंट का प्रवेश द्वार पूर्व दिशा में ईशान कोण की ओर या दक्षिण दिशा में आग्नेय कोण की ओर या पश्चिम दिशा के वायव्य कोण की ओर या उत्तरी दिशा में ईशान कोण की ओर होना चाहिए। बेसमेंट कभी भी चूल्हे के आकार का नहीं बनवाना चाहिए क्योंकि यह अशुभ फलदायक होता है। इससे भवन का नाश होता है तथा मकान में रहने वालों का जीवन कष्टमय हो जाता है।
कोषागार का स्थान-
- धार्मिक ग्रंथ एवं वास्तु शास्त्र में उत्तर दिशा का स्वामी कुबेर को माना गया है। इसलिए धन संपत्ति एवं महत्वपूर्ण कागजात आदि रखने के लिए कोषागार बनाने के लिए सबसे उत्तम दिशा उत्तर माना गया है।
- तिजोरी को कभी भी ईशान कोण वाले कमरे में नहीं रखना चाहिए। ईशान कोण में तिजोरी होने से धन की हानि होती है।
- वास्तु सिद्धांत के अनुसार आग्नेय कोण में तिजोरी रखने से अनावश्यक धन खर्च होता है।
- तिजोरी को नैऋत्य कोण में रखने से कुछ समय के लिए धन की वृद्धि होती है परंतु कुछ समय बाद ही यह धन किसी कुकर्म या चोरी आदि के कारण नष्ट हो जाता है।
- यदि कोषागार का अलग कमरा बनाना संभव नहीं हो तो इस कार्य में प्रयोग की जाने वाली अलमारी, सेफ या तिजोरी आदि को मकान के उत्तर दिशा में बने कमरे में रखना चाहिए।
- कोषागार या उत्तर दिशा के कमरे में रखी तिजोरी कमरे के दक्षिण या पूर्व एवं दक्षिण या पश्चिम कोणों के अतिरिक्त दक्षिण दिशा में इस प्रकार रखना चाहिए कि तिजोरी का द्वार उत्तर की ओर खुले साथ ही यह दीवार से दो या तीन इंच दूर हो।
मकान में लिफ्ट के लिए आवश्यक वास्तु शास्त्र-
- लिफ्ट मकान में उत्तर ईशान या पूर्व दिशा में लगवानी चाहिए।
- लिफ्ट के लिए दक्षिण दिशा या नैऋत्य कोण अधिक उपयोगी मानी गई है।
- भवन के बीच भाग में कभी भी लिफ्ट नहीं लगवानी चाहिए।
चारदीवारी के लिए वास्तु सिद्धांत –
- भूखण्ड के चारों ओर चारदीवारी बनवानी आवश्यक होती है। चारदीवारी में कम से कम दो गेट होने चाहिए। चारदीवारी में कभी भी एक गेट न बनवाएं। इससे परिवार में अनेक परेशानियां उत्पन्न हो सकती है।
- किसी उद्योग, फैक्ट्री या दुकान में चारदीवारी ज्यादा ऊंची हो तो अशुभ सूचक हैं। इससे उद्योगपति का वंश आगे नहीं बढ़ता।
- चारदीवारी के अंदर उत्तर एवं पूर्व दिशा की ओर दक्षिण एवं पश्चिम दिशा की अपेक्षा अधिक खाली स्थान छोड़ना चाहिए।
- मकान की दीवार तथा चारदीवारी की दीवार में अंतर रखना आवश्यक है।
- चारदीवारी की नैऋत्य कोण की दीवार सबसे ऊंची होने पर यश, मान-सम्मान, धन व सुख प्राप्त होता है। चारदीवारी की वायव्य कोण की दीवार सबसे ऊंची होने पर निरोग व सुख प्राप्त होता है।
- चारदीवारी की पूर्व दिशा की ओर दीवार सबसे ऊंची नहीं होनी चाहिए। इससे परिवार के सदस्यों में कलह उत्पन्न होती है।
- चारदीवारी की आग्नेय कोण की दीवार सबसे ऊंची होने पर यश मिलता है।
- चारदीवारी की उत्तरी दीवार सबसे ऊंची होने पर धन की हानि होती है। इससे परिवार की स्त्रियां रोगग्रस्त होती है तथा परिवार कर्ज में डूबा रहता है।
- चारदीवारी की ईशान कोण की दीवार सबसे ऊंची होने पर समस्त कार्य बाधित होते हैं।
वास्तु एवं धार्मिक तस्वीर के लिए वास्तु सिद्धांत
- वास्तु शास्त्र में धार्मिक तस्वीरों का अत्यंत महत्व दिया गया है। मकान में विभिन्न स्थानों पर प्रयोग किए जाने वाले धार्मिक तस्वीरों के लिए वास्तु शास्त्र में निम्न स्थान बताए गए हैं-
- रामायण, महाभारत या किसी भी प्रकार के युद्ध वाली तस्वीर, इन्द्रजालिक तस्वीर, पत्थर या लकड़ी के बने राक्षसों की मूर्तियां तथा रोते हुए किसी मनुष्य की मूर्ति या तस्वीर को कमरे के किसी भी कमरे में लगाना अशुभ माना गया है।
- बच्चों के पढ़ने के कमरे में सरस्वती जी, प्रेरणादायक महापुरुषों तथा गुरुजनों की तस्वीर लगवानी चाहिए। बच्चों के कमरे में फिल्मी स्टारों की तस्वीर नहीं होनी चाहिए। ऐसे किसी भी काल्पनिक व्यक्ति की तस्वीर बच्चों के कमरे में न लगाएं जिससे बच्चों के मस्तिष्क पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है।
- परिवार के मुखिया को अपनी स्टडी टेबल पर ईशान कोण में अपने आराध्य देवी-देवता की तस्वीर लगानी चाहिए।
- वास्तु सिद्धांत के अनुसार मकान के मुख्यद्वार पर धार्मिक या मांगलिक तस्वीर अवश्य लगानी चाहिए। इनके कारण बुरी आत्माएं और बुरी नजर आदि भवन में प्रवेश नहीं कर पाती है।
- सूअर, सियार, सांप, गिद्ध, उल्लू, कबूतर, कौआ, बाज आदि पशु-पक्षियों की तस्वीर भी मकान में नहीं लगानी चाहिए।
- अपने स्वर्गवासी पूर्वजों की तस्वीर दक्षिण या पश्चिम दिशा में लगानी चाहिए।
- कमरे की दीवार पर धार्मिक तस्वीर लगाते समय यह अवश्य ध्यान रखें कि वे तस्वीरें एक-दूसरे के सामने न हों।
- भवन में तस्वीर सौम्य एवं मनमोहक होनी चाहिए। इससे मन प्रसन्न रहता है। यह शांति का भी प्रतीक होता है।
वास्तु शास्त्र में रंग का महत्व
वास्तु शास्त्र में रंगों का विशेष महत्व बताया गया है। प्रकृति में अनेक रंग मौजूद है और इन सभी रंगों का अपना अलग प्रभाव एवं महत्व है। मकान का फर्श बनाते समय काले रंग के पत्थर का अधिक प्रयोग नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से इस मकान में रहने वालो पर राहु का बुरा प्रभाव बढ़ जाता है जिससे उसमें रहने वाले लोगों की चिंता एवं परेशानी बढ़ जाती है।
फर्श एवं दीवारों के लिए सफेद रंग का अधिक उपयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि इसका अधिक प्रयोग करने से परिवारिक जीवन अत्यधिक महत्वाकांक्षी हो जाएगा जो भविष्य में भोग-विलास के कारण परिवारिक सुख को समाप्त कर देता है। यदि शुक्र का प्रभाव अधिक एवं शक्तिशाली हो तो सफेद रंग का प्रयोग करना शुभ होता है लेकिन शुक्र कमजोर हो तो सफेद रंग का प्रयोग करना अशुभ होता है। यदि शुक्र उच्च, शक्तिशाली एवं केंद्र या त्रिकोण में हो या मित्रक्षेत्री हो तो मकान की साज-सज्जा में निर्मलता व पीले व शुभ्र रंग का प्रयोग करना उचित होता है। यदि गुरु का प्रभाव निम्न हो, शत्रुक्षेत्री व कमजोर हो तो पीले व शुभ्र रंग का प्रयोग करने से परिवार में विरोध पैदा करता है जिससे परिवार के सदस्यों के आपस में नहीं बनती। गुरु-शुक्र का संबंध होने पर भी पीले व सफेद रंग का अधिक प्रयोग भी आपसी मतभेद को पैदा करता है।
प्रत्येक राशि एवं ग्रह का अपना एक रंग होता है जो व्यक्ति के लिए शुभ होता है। प्रत्येक रंग का अपना प्रभाव होता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार भवन बनवाते समय छोटे-मोटे वास्तुदोष को दूर करने के लिए यदि हम मकान का रंग एवं उसकी आंतरिक कमरे की सजावट अपनी राशि के अनुकूल करवाएं तो वह दूर हो सकते हैं। इससे उस मकान में रहने वाले सभी लोग सुख एवं शांति का अनुभव करते हैं। राशि के अनुकूल मकान को रंग कराने से समृद्धि में बढ़ोतरी होती है।
विभिन्न रंग प्रभाव
- मध्यम पीला मकान में मध्यम पीला रंग कराने से उस भवन में रहने वालों में अच्छें गुण आ जाते हैं।
- हल्का पीला यह रंग लोगों की बुद्धिमता का सूचक होता है। इस रंग से मकान रंगवाने से मस्तिष्क पर अच्छा प्रभाव पड़ता है।
- गहरा पीला यह रंग स्वस्थ जीवन का सूचक होता है। यह रंग शरीर में स्फूर्ति एवं ताजगी पैदा करने वाला होता है।
- तीव्र मध्यम पीला यह रंग मानव प्रेम का सूचक है।
- गहरा शुद्ध लाल यह रंग प्यार एवं मिलन का सूचक है।
- मध्यम लाल इस रंग का प्रयोग मकान में करने से स्वास्थ्य तथा जीवन्तता का पता चलता है।
- चमकदार लाल यह रंग चाह तथा लालसा को दर्शाता है।
- गहरा नारंगी यह रंग महत्वकांक्षी जीवन का प्रतीक होता है।
- मध्यम नारंगी यह रंग संघर्षशील एवं उत्साहित जीवन को दर्शाता है।
- हल्का नारंगी रंग यह रंग जीवन एवं मन की तीव्रता को बताता है।
- गहरा भूरा रंग इस रंग को उपयुक्तता का सूचक माना गया है।
- गाढ़ा गुलाबी रंग वास्तु शास्त्र में इस रंग को स्त्रीत्व एवं उत्सव का सूचक होता है।
- मध्यम गुलाबी रंग इस रंग को वास्तु शास्त्र में कोमलता एवं सरल स्वभाव का सूचक माना गया है।
- तीव्र हल्का सुनहरा यह रंग मोहकता का सूचक माना गया है।
- मध्यम सुनहरा वास्तु शास्त्र में इस रंग को सुख-संपन्नता का सूचक माना गया है।
- गाढ़ा मध्यम सुनहरा यह रंग वैभवशाली जीवन का प्रतीक है।
- तीव्र मध्यम नीला यह रंग आदर्शवाद का सूचक माना गया है।
- गहरा नीला रंग इस रंग को वास्तु शास्त्र में ईमानदारी एवं लगन का सूचक माना गया है।
- हल्का नीला रंग यह रंग शांतिप्रियता को दर्शाता है।
- हल्का मध्यम नीला रंग यह रंग दयालुता को दर्शाता है।
- मध्यम हरा रंग यह रंग खुलेपन एवं व्यवहारिकता को बताता है।
- गहरा हरा रंग इस रंग को भोलेपन का प्रतीक माना जाता है।
- हल्का बैंगनी रंग यह रंग कोमलता का सूचक होता है।
- गहरा बैंगनी रंग यह वैभवशालिता का सूचक है।
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